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Showing posts from July, 2020

मरती मानवता

हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमले का दर्द आज भी वहां के लोग महसूस करते हैं। पहली बार मानव विकसित समाज में इस बम का इस्तेमाल किया गया था। अगस्त 1945 से पहले ये दोनों भी आम शहर की तरह ही थे। लेकिन , अगस्त महीने की दो तारीखों से इनके नक़्शे ही बिगड़ गयें।   6 और 9 अगस्त को परमाणु बम के गिरते ही पूरा शहर तबाह हो गया। दोनों शहर को मिलाकर तक़रीबन ढाई लाख लोग इस हादसे में मारे गयें। और लाखों इसके विकिरण के प्रभाव में आ गयें। जिसका नतीजा यह हुआ कि एक बड़ी आबादी विकलांग हो गई। ऐसा नहीं है कि जो हुआ सिर्फ़ उसी समय हुआ। उस घातक बम का प्रभाव आज भी कायम है। वहां जन्म लेने वाला हर बच्चा विकलांग पैदा होता है। यह सब एक युद्ध का परिणाम था। ये दो देशों के बीच लड़े गए युद्ध की भयानक अवस्था थी। इस बम ने युद्ध की परिभाषा ही बदल दी। 1945 से पहले लड़े गए युद्ध और परमाणु बम से लड़े गए युद्ध के बीच एक बड़ा फ़र्क था। पहले के युद्ध में डंडा , धनुष-तीर , भाला , तलवार , चाकू , बंदूक-गोली , तोप और हस्त-चलित बम-बारूद का इस्तेमाल होता था...

सुपरपावर की सच्चाई

क्या हमें चीन को नैतिकता का पाठ पढ़ाना चाहिए ? क्या हमें उसकी गलतियों के लिए उसे माफ़ कर देना चाहिए ? ये सवाल कोरोना से रिलेटेड है। इसी सवाल के साथ आज का ये ब्लॉग है। इन सवालों का ज़वाब आज केवल एक देश नहीं बल्कि हर वह देश मांग रहा है जो इस महामारी से गुज़र रहा है। आज हर प्रभावित देश अपने देशवासियों को बचाने में जुटा है। जिनके पास मेडिकल केयर के नाम पर कम संसाधन हैं वो भी और जिनके पास अधिक संसाधन है वो भी। जो विकासशील देश हैं वो भी और जो विकसित देश हैं वो भी। हर देश इससे परेशान है , दहशत में है। कोई भी देश इस कोरोना रूपी राक्षस से लड़ने में सक्षम नहीं दिख रहा। इस मामले में जब सुपर पावर कहे जाने वाले देशों की हवा निकली हुई है। तब उन देशों की क्या हालत हो रही होगी जिनके पास मेडिकल केयर की सुविधा न के बराबर है। एक तरह से देखें तो कोरोना ने सुपर पावर देशों को उनकी औक़ात बता दी है। बात-बात पर एटम बम छोड़ने की धमकी देने वाले भी आज कोरोना से युद्ध करने में ख़ुद को अक्षम मान रहे हैं। ज़रा सोचिए जो न दिखकर भी इतना कोहराम मचा सकता है। अगर वह दिख गया होता तो क्या करता ? मैं जानता हूं कि इस सवाल का ज़वाब...