सुपरपावर की सच्चाई
क्या
हमें चीन को नैतिकता का पाठ पढ़ाना चाहिए ?
क्या हमें उसकी गलतियों के लिए उसे माफ़ कर देना चाहिए ? ये
सवाल कोरोना से रिलेटेड है। इसी सवाल के साथ आज का ये ब्लॉग है। इन सवालों का ज़वाब
आज केवल एक देश नहीं बल्कि हर वह देश मांग रहा है जो इस महामारी से गुज़र रहा है।
आज हर प्रभावित देश अपने देशवासियों को बचाने में जुटा है। जिनके पास मेडिकल केयर
के नाम पर कम संसाधन हैं वो भी और जिनके पास अधिक संसाधन है वो भी। जो विकासशील
देश हैं वो भी और जो विकसित देश हैं वो भी। हर देश इससे परेशान है, दहशत में है। कोई भी देश इस कोरोना रूपी राक्षस से लड़ने में सक्षम नहीं
दिख रहा। इस मामले में जब सुपर पावर कहे जाने वाले देशों की हवा निकली हुई है। तब
उन देशों की क्या हालत हो रही होगी जिनके पास मेडिकल केयर की सुविधा न के बराबर
है। एक तरह से देखें तो कोरोना ने सुपर पावर देशों को उनकी औक़ात बता दी है।
बात-बात पर एटम बम छोड़ने की धमकी देने वाले भी आज कोरोना से युद्ध करने में ख़ुद को
अक्षम मान रहे हैं। ज़रा सोचिए जो न दिखकर भी इतना कोहराम मचा सकता है। अगर वह दिख
गया होता तो क्या करता ? मैं जानता हूं कि इस सवाल का ज़वाब
आपके पास है। आप यही कहते कि तब हम उससे युद्ध करते और युद्ध करके उसे मार डालते।
आपके पास यह तर्क हो सकता है कि अदृश्य दुश्मन से लड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन
है। लेकिन, दिखने वाले शत्रु से लड़ा जा सकता है।
क्योंकि  वह आपके सामने खड़ा होता है। ये
तर्क सही है ? सुनामी आपके सामने होती है ! तूफ़ानी हवा आपके
सामने होती है ! बारिश के दिनों में आकाश से गिरती बिज़ली को आप देखते हैं ! भूकंप
में आप सब कुछ हिलते डुलते देखते हैं ! इनसब से छोटी  से बड़ी तबाही होती है। क्या आप उनसब को रोक
पाते हैं ? शत्रु दिखने वाला हो या न दिखने वाला अगर वह आपसे
ज्यादा ताक़तवर है तो आपका कोई भी हथियार उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। आप चाह कर
भी भी इन्हें रोकने के लिए कोई हथियार बना सकते हैं ? यक़ीनन
कभी नहीं। जब आप जाने हुए शत्रुओं  से लड़ने
के लिए अब तक हथियार नहीं बना पाये। तब उस शत्रु से आप कैसे लड़ पाएंगे  जिसका जन्म अभी-अभी हुआ है। ये सब शत्रु
प्राकृतिक हैं। प्राकृतिक शत्रु से लड़ना मानव के बस की बात नहीं। क्योंकि, मानव प्रकृति पर निर्भर है, प्रकृति मानव पर नहीं।
लेकिन, आज हम जिस शत्रु की बात कर रहे हैं वह प्राकृतिक जनित
नहीं बल्कि मानव जनित है। यह सबको पता है कि यह एक देश के वाइरोलोजी लैब में बनाया
गया वाइरस है। उस देश का नाम भी किसी से छिपा भी नहीं है। ये एक विडंबना ही कि
भारत के दो पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और चीन दो अलग-अलग तरह के वाइरस बनाते हैं।  जिसमें से एक आतंकवादी नामक वाइरस पैदा करता है
। और दूसरा कोरोना जैसा वाइरस। ये भी विडंबना देखिये जब भारत चिल्ला-चिल्लाकर पाकिस्तान
की करतूतों  को सुपर पावर देशों को बताता है।
तब  इसके आरोपों पर कोई ध्यान नहीं देता।
ऐसा नहीं था कि सुपर पावर देश नहीं जानते हैं। पता है उन्हें लेकिन इस मामले में
वे भारत की मदद नहीं करना चाहते। यूएनओ में भारत पाकिस्तान स्पोंसर्ड टेर्ररिज़्म
की व्याख्या करते करते थक गया। लेकिन किसी के कानों पर ज़ू तक नहीं रेंगा। भारत की
तरफ़ से पाकिस्तान के खिलाफ़ न जाने कितने सबूत पेश किए गयें। पर हर सबूत यूएनओ को चलाने
वाले ठेकेदारों को कम ही लगी। उन्हें हर बार और सबूत चाहिए होता है। मानो वे
सबूतों का आचार बनाकर खाएंगे। भारत में आतंकवादी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के
बीच युद्ध जैसे हालात हो जाया करते हैं। तब सुपर पावर देश दोनों देशों के बीच मध्यस्थता
करने को बेताब दिखते हैं। लेकिन, जिस आतंकवादी कारणों से ऐसे
हालात बनते हैं  उस वज़ह को लेकर पाकिस्तान
को लताड़ने की बजाय भारत को शांति का पाठ पढ़ाया करते हैं। हद तो तब हो गई जब यूएनओ का
हर सदस्य देश चीन के कोरोना वाइरस का शिकार हो गया। ऐसा नहीं है कि सुपर पावर कहे
जाने वाले देश चीन के इस वाइरस से बच गये हों ! वाइरस की सबसे बड़ी मार तो उनसब पर
ही भारी पड़ी है। सुपर पावर मुगालते में ही रह गए। उन्हें लगा कि उन पर तो सुपर
पावर का अभेद कवच जड़ा है। उनका ये वाइरस क्या कर लेगा ?
लेकिन, जब वही वाइरस उनके मेडिकल केयर को धारशायी कर दिया तब
जाकर उनका सुपर पावर वाला कोनसेप्ट ख़त्म हो गया। ये अलग बात है कि इतना कुछ होने
के बाद भी वे इस बात को मानने को तैयार नहीं हैं। चीन की खुराफ़ाती कारिस्तानी से
ऐसे वाइरस का जन्म हुआ जिससे पूरा विश्व सकते में आ गया। चीन ने ऐसा बायोलोजिकल
वेपन चलाया जिससे पूरा विश्व थर्रा उठा। इस वेपन का असर धीरे-धीरे बढ़ता ही जा रहा
है। सारे देश के नेतृत्वकर्ताओं के माथे पर चिंता की अनगिनत लकीरें खींच गई है। इस
वेपन से न केवल लोग टार्गेट हो रहे हैं। बल्कि लोगों का रोजी रोज़गार भी छिनता जा रहा
है।   बहुत सारे व्यसायिक संगठन के गेट पर ताले लग गए।
बहुत सारे घरों के चूल्हे जलने बंद हो गए। आज जब किसी को कोरोना होता है तब उसके
साथ ऐसे व्यवहार किया जाता है मानो जैसे वह कोई आतंकवादी हो। हद तो तब हो जाती जब
कोरोना से किसी की मौत हो जाती है। और उसकी लाश घाट पर जलने नहीं दी जाती। इस
बीमारी ने मानवता को भी शर्मशार कर डाला है। कोरोना पेशंट को पुलिस इलाज़ के लिए जब
ले जाती है तब कहा ये जाता है कि ‘ उठा ‘ के ले गया। मतलब वह मरीज़ नहीं बल्कि कोई आतंकवादी हो ! मुझे हैरत इस बात
की नहीं कि चीन इस तरह के काम करने में माहिर है या फ़िर उसकी यह फ़ितरत है। बल्कि
इसे लेकर है कि इतना होने के बाद भी सुपर कॉप जैसे देश खामोश कैसे हैं। अगर कोई
व्यक्ति गलती करता है तो हर देश में उसे सजा देने के लिए एक कानून होता है। अब अगर
कोई देश गलती करता है तो उसे भी सजा देने का प्रावधान तो होगा। इन्हीं सब वज़ह से
दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूएनओ की स्थापना हुई थी। ताकि हर देश पर अंकुश लगाया जा
सके। जिससे तीसरे विश्व युद्ध जैसे हालात उत्पन्न न हो सके। अंतर्राष्ट्रीय स्तर
या फ़िर दुनिया में शांति बनी रहे। इसके लिए यूएनओ के अंदर सुरक्षा परिषद नामक
संस्था का गठन किया गया। जिसमें पांच स्थायी सदस्य बनाए गए।  या कहा जा सकता है कि दुनिया में शांति बनी रहे
इसकी कमान पांच देशों के हाथों में दिया गया। लेकिन, यूएनओ
के चार्टर में ये नहीं बताया गया कि यूएनओ का कमान जिन बड़े देशों के हाथों में विश्व
में शांति बहाल रखने के लिए दिया गया है। मतलब अगर कोई देश मनमानी करता है तो उसे
रास्ते पर लाने के लिए परिषद के स्थायी सदस्य उसे डंडा लगा सकते हैं। लेकिन, अगर स्थायी सदस्य में से कोई एक मनमानी करता है। विश्व की शांति भंग करता
हो तब उस पर डंडा चलाने का अधिकार किसे सौंपा गया है ? ये
यूएनओ के चार्टर में नहीं है। अगर होता भी तो सुपर पावर देशों को इससे  फ़र्क भी नहीं पड़ता। क्योंकि, इसका ताज़ा उदाहरण अभी चीन है। चीन के वाइरोलोजी लैब से निकला वाइरस विश्व
के हर कोने में पहुंचकर उत्पात मचा रहा है। और, यूएनओ बड़ी
ख़ामोशी से उसके उत्पात को देखे जा रहा है। अभी तक किसी देश ने भी उस पर नकेल कसने
की जुर्रत नहीं की है। किसी ने भी उसे दंडित करने की पहल नहीं की है। ये समय न
केवल उस पर नकेल कसने या दंडित करने का है बल्कि उसे हर तरह से बहिष्कार करने की
भी ज़रूरत है। क्योंकि, अगर उसे सजा नहीं मिली तो आने वाले
वक़्त में वह कोरोना जैसे वाइरस पूरे विश्व में फैलाता रहेगा। क्योंकि, गलती की सजा न मिलने पर गलती करने वालों का मनोबल बढ़ जाता है। निसन्देह
चीन का  भी मनोबल बढ़ेगा। और उसके बढ़े हुए
मनोबल का खामियाज़ा पूरा विश्व भुगतेगा।            
True
ReplyDeleteRajiv your writing style is very good, modest I can say. Using simple words ,you make it very interesting and informative for your readers.
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